छल Poetry

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

हर्फ़ सादा-ओ-रंगीं

मुनीर नियाज़ी

शौक़ कितने फ़रेब देता है

मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई

ज़ुहैर कंजाही

यूँ तो दिए फ़रेब सहारों ने उम्र भर

ज़ोहरा नसीम

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

वो किताब

ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

दुनिया वो रास्ते की रुकावट है दोस्तो

ज़ीशान साजिद

कब तलक ये शाला-ए-बे-रंग मंज़र देखिए

ज़ेब ग़ौरी

गुल-पोश बाम-ओ-दर हैं मगर घर में कुछ नहीं

ज़ौक़ी मुज़फ्फ़र नगरी

ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे

ज़रीना सानी

दूसरों को फ़रेब दे दे कर

ज़की काकोरवी

मेरी बर्बादियों की ये तस्वीर

ज़ख़मी हिसारी

मुझ पर सुरूर छा गया बादा-ए-दिल-नवाज़ से

ज़हीर अहमद ताज

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था

ज़फ़र इक़बाल

सहने को तो सह जाएँ ग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ तक

यावर अब्बास

मुझे आगही का निशाँ समझ के मिटाओ मत

यासमीन हामिद

उमंगों में वही जोश-ए-तमन्ना-ज़ाद बाक़ी है

याक़ूब उस्मानी

मज़ाक़-ए-काविश-ए-पिन्हाँ अब इतना आम क्या होगा

याक़ूब उस्मानी

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

चलता नहीं फ़रेब किसी उज़्र-ख़्वाह का

यगाना चंगेज़ी

अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या

यगाना चंगेज़ी

उम्मीद

वज़ीर आग़ा

ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख

वक़ार ख़ान

अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए

वजीह सानी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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