छल Poetry (page 6)

इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई

सहबा अख़्तर

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सहबा अख़्तर

तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है

साग़र सिद्दीक़ी

चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है

साग़र सिद्दीक़ी

आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए

साग़र सिद्दीक़ी

दर्द-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अब अंजाम नहीं

सफ़ी लखनवी

यूँ तो हर एक शख़्स ही तालिब समर का है

सादिक़ नसीम

शिकस्त-ए-आबला-ए-दिल में नग़्मगी है बहुत

सादिक़ नसीम

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सबा अख़्तर

लुटा के राह-ए-मोहब्बत में हर ख़ुशी मैं ने

सबा अफ़ग़ानी

कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा

एस ए मेहदी

गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बे-ख़बर न था

रोहित सोनी ‘ताबिश’

दवाम के दयार में

रियाज़ लतीफ़

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी

रिफ़अत सुलतान

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

है ग़नीमत ये फ़रेब-ए-शब-ए-व'अदा ऐ दिल

रज़ा हमदानी

इन आँखों में बसा कोई ज़ोहरा-जबीं है अब

रऊफ़ यासीन जलाली

दुश्मन की बात जब तिरी महफ़िल में रह गई

रसा रामपुरी

जब तक मुझे नसीब तिरी दोस्ती रही

राज कुमार सूरी नदीम

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

रईस अमरोहवी

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

तबाही बस्तियों की है निगहबानों से वाबस्ता

राही कुरैशी

थोड़ी सी दूर तेरी सदा ले गई हमें

इरफ़ान अहमद

अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ

इरम लखनवी

कुछ ऐसा है फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना बरसों से

इक़बाल सुहैल

ज़िंदाँ-नसीब हूँ मिरे क़ाबू में सर नहीं

इक़बाल सुहैल

ज़बानों पर नहीं अब तूर का फ़साना बरसों से

इक़बाल सुहैल

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