छल Poetry (page 2)

दावत-ए-इंक़िलाब

वहीदुद्दीन सलीम

उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं

वारिस किरमानी

मेरा साक़ी

उरूज क़ादरी

बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या

तिलोकचंद महरूम

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

अपने दुखों का हम ने तमाशा नहीं किया

तारिक़ मतीन

नज़र का नश्शा बदन का ख़ुमार टूट गया

तारिक़ बट

हर रस्म पर नज़र को झुकाते हुए चले

तलअत इशारत

लब तक आया गिला हमेशा से

ताजदार आदिल

ये शहर आफ़तों से तो ख़ाली कोई न था

ताबिश कमाल

सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे

ताबिश देहलवी

बंद-ए-ग़म मुश्किल से मुश्किल-तर खुला

ताबिश देहलवी

कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हर मोड़ को चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र कहो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है

ताबाँ अब्दुल हई

बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं

सय्यद ज़मीर जाफ़री

मैं ने कहा कि दा'वा-ए-उलफ़त मगर ग़लत

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

आदमी

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

इश्वा क्यूँ दिल-रुबा नहीं होता

सय्यद हामिद

आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा

सय्यद हामिद

गुलों की ख़ूँ-शुदगी को शगुफ़्तगी न समझ

सय्यद आबिद अली आबिद

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा

सुरूर बाराबंकवी

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं

सुरेन्द्र शजर

उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ

सुरेन्द्र पंडित सोज़

अपनी अना के गुम्बद-ए-बे-दर में बंद है

सूरज तनवीर

सफ़र में अब भी आदतन सराब देखता हूँ मैं

सुहैल अहमद ज़ैदी

नवाह-ए-जाँ में कहीं अबतरी सी लगती है

सुहैल अहमद ज़ैदी

ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे

सुहा मुजद्ददी

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