छल Poetry (page 10)

हर साँस के साथ जा रहा हूँ

फ़ानी बदायुनी

दिल और दिल में याद किसी ख़ुश-ख़िराम की

फ़ानी बदायुनी

बे-ख़ुदी पे था 'फ़ानी' कुछ न इख़्तियार अपना

फ़ानी बदायुनी

तिरे वादों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

दोनों जहाँ से आ गया कर के इधर उधर की सैर

फ़ैज़ान हाशमी

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक रह-गुज़र पर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

एजाज़ वारसी

रंग मौसम के साथ लाए हैं

एजाज़ रहमानी

हुसूल-ए-मक़्सद में आख़िरश यूँ रहेगी क़िस्मत दख़ील कब तक

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

शौक़ के मुम्किनात को दोनों ही आज़मा चुके

एहसान दरबंगावी

वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा

एहसान दानिश

नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा

एहसान दानिश

मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था

एहसान दानिश

बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे

एहसान दानिश

सवाल ये है कि इस पुर-फ़रेब दुनिया में

दिवाकर राही

ग़म को वज्ह-ए-हयात कहते हैं

द्वारका दास शोला

सौग़ात

दाऊद ग़ाज़ी

सितम के बा'द भी बाक़ी करम की आस तो है

दानिश फ़राही

क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में

दाग़ देहलवी

क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में

दाग़ देहलवी

कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो

दाग़ देहलवी

खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है

डी. राज कँवल

हर आरज़ू में रंग है बाग़-ओ-बहार का

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

जिन का मक़्सद फ़रेब होता है

चमन लाल चमन

हम से यूँ बे-रुख़ी से मिलते हैं

चमन लाल चमन

किस ने कहा किसी का कहा तुम किया करो

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम

बेख़ुद देहलवी

होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ

बहज़ाद लखनवी

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