दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
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आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था
शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें
तुम्हारे हुस्न के नाम
उम्मीद-ए-सहर की बात सुनो
हमारे दम से है कू-ए-जुनूँ में अब भी ख़जिल
हसीना-ए-ख़्याल से
हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
ये किस दयार-ए-अदम में...
हुस्न मरहून-ए-जोश-ए-बादा-ए-नाज़