तमाशा Poetry

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं

अर्श सिद्दीक़ी

बारिश

एहतिशाम अख्तर

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा

ज़िया जालंधरी

मिरे जुनूँ में मिरी वफ़ा में ख़ुलूस की जब कमी मिलेगी

ज़िया फ़तेहाबादी

वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते

ज़ेहरा निगाह

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते

ज़ेहरा निगाह

लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए

ज़ेहरा निगाह

रास्ते में कहीं खोना ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझे

ज़ेब ग़ौरी

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ

ज़ेब ग़ौरी

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

ज़ेब ग़ौरी

ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना

ज़करिय़ा शाज़

ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे

ज़करिय़ा शाज़

सदियों में कोई एक मोहब्बत होती है

ज़हीर रहमती

ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है

ज़हीर रहमती

वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं

ज़हीर काश्मीरी

मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता

ज़हीर काश्मीरी

इश्क़ है इश्क़ तो इक रोज़ तमाशा होगा

ज़हीर देहलवी

रहता तो है उस बज़्म में चर्चा मिरे दिल का

ज़हीर देहलवी

हसीनों में रुत्बा दो-बाला है तेरा

ज़हीर देहलवी

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

मोम के लोग कड़ी धूप में आ बैठे हैं

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

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