यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए
बात कुछ भी न हो और दिल में तमाशा लग जाए
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वक़्त ज़ाए न करो हम नहीं ऐसे वैसे
चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें
आँखों में राख डाल के निकला हूँ सैर को
कोई किनाया कहीं और बात करते हुए
हम इतनी रौशनी में देख भी सकते नहीं उस को
किरदार उस को ढूँडते फिरते हैं जा-ब-जा
मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में
ख़ुदा को मान कि तुझ लब के चूमने के सिवा
मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं
एक दिन सुब्ह जो उट्ठें तो ये दुनिया ही न हो
हम पे दुनिया हुई सवार 'ज़फ़र'
सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या