एक दिन सुब्ह जो उट्ठें तो ये दुनिया ही न हो
है मदार अब किसी ऐसी ही ख़ुश-इम्कानी पर
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1173) Peoples Rate This
अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे
इक लहर है कि मुझ में उछलने को है 'ज़फ़र'
ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए
'ज़फ़र' ज़मीं-ज़ाद थे ज़मीं से ही काम रक्खा
पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है
दरिया-ए-तुंद-मौज को सहरा बताइए
मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था
तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
ये ज़मीन आसमान का मुमकिन
खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे
जहाँ लम्हा-ए-शाम बिखेर दिया