सफेदी Poetry

पुल-सिरात

ज़ेहरा निगाह

मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया

याक़ूब यावर

मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद

सिराज औरंगाबादी

ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है

ज़ौक़

छटा आदमी

शाज़ तमकनत

टलने के नहीं अहल-ए-वफ़ा ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ से

सीमाब ज़फ़र

उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया

रउफ़ रज़ा

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए

राशिद अमीन

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या

फ़ारूक़ नाज़की

धनक की बूँद

असलम फ़र्रुख़ी

सोते हैं फैल फैल के सारे पलंग पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

इक अश्क सर-ए-शोख़ी-ए-रुख़सार में गुम है

अमीन अडीराई

नॉस्टेलजिया

अली इमरान

फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ

अहमद ज़िया

कौन सी दिशा कहाँ की दिशा

अहमद हमेश

अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

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