मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

इस शख़्स को जीने की दुआ क्यूँ नहीं देते

इस पेड़ के साए में भी क्यूँ इतनी घुटन है

हैं सब्ज़ ये पत्ते तो हवा क्यूँ देते

जिस ख़ून में आ जाए सफ़ेदी की मिलावट

उस ख़ून को आँखों से बहा क्यूँ नहीं देते

आईने सताते हैं तो चेहरे को न देखो

आँखों में चमक है तो बुझा क्यूँ नहीं देते

इस अर्सा-ए-ख़ामोश में हम तन्हा खड़े हैं

है दर्द हमारा तो सदा क्यूँ नहीं देते

कुछ लोग जो पीछे हैं वो पंजों पे खड़े हैं

क़द अपना ये थोड़ा सा घटा क्यूँ नहीं देते

है आग का ये खेल तो फिर सोचना कैसा

ख़ुद अपना बदन आप जला क्यूँ नहीं देते

वो बात जो पढ़ते रहे आँखों में हमारी

वो सारे ज़माने को बता क्यूँ नहीं देते

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In Hindi By Famous Poet Rashid Fazli. is written by Rashid Fazli. Complete Poem in Hindi by Rashid Fazli. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.