गुल Poetry

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

ज़ुहर-ए-आशिक़ी से डरता हूँ

दाऊद मोहसिन

शम्अ'

मुबश्शिर अली ज़ैदी

तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं

तरुणा मिश्रा

इस्तिआ'रा

हारिस ख़लीक़

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ

ज़ुबैर शिफ़ाई

हर मुलाक़ात में लगते हैं वो बेगाने से

ए जी जोश

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

सितम कब उन पे ढाया है किसी ने

जावेद सिद्दीक़ी आज़मी

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

महमूद शाम

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

फ़रेब-ए-ख़ूबी-ए-नैरंग देखने के लिए

संजय मिश्रा शौक़

पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है

अली अकबर अब्बास

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

दिल्ली पे क़ुर्बान

इज़हार मलीहाबादी

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो

मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने

मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

रहरव-ए-राह-ए-ख़राबात-ए-चमन

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

कुछ गुनह नहीं इस में ए'तिराफ़ ही कर लो

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

बे-सबात सुब्ह शाम और मिरा वजूद

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

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