मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने
कैसी तौबा, तौबा तौबा, तौबा नज़्र-ए-जाम करो
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बरसों से तिरा ज़िक्र तिरा नाम नहीं है
बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ
अब भी जो लोग सर-ए-दार नज़र आते हैं
यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला
वो दिन गुज़रे कि जब ये ज़िंदगानी इक कहानी थी
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ
ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
नाहीद ओ क़मर ने रातों के अहवाल को रौशन कर तो दिया
आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ