बाहर Poetry

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

हिजरत

ग़ज़नफ़र

कई लम्हे

फ़ैसल हाश्मी

नए आदमी का कंफ़ेशन

ग़ज़नफ़र

वो आलम ख़्वाब का था

हारिस ख़लीक़

ज़मीन सिमट कर मेरे तलवे से आ लगी

जवाज़ जाफ़री

अलाव

बलराज कोमल

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

क़लम

इक नफ़स नाबूद से बाहर ज़रा रहता हूँ मैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

कुत्तों का नौहा

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

मेरे कमरे में इक ऐसी खिड़की है

ज़िया मज़कूर

टाइपिस्ट

ज़िया जालंधरी

अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा

ज़िया जालंधरी

ये ख़्वाब सारे

ज़िया फ़ारूक़ी

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

रिश्ते से मुहाफ़िज़ का ख़तरा जो निकल जाता

ज़ेहरा निगाह

वो बोलती कुछ भी नहीं

ज़ेहरा अलवी

मिडिल-क्लास

ज़ेहरा अलवी

खिड़की के रस्ते से लाया करता हूँ

ज़ीशान साहिल

सूई

ज़ीशान साहिल

शाइर

ज़ीशान साहिल

रंग

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नौहा

ज़ीशान साहिल

मोहब्बत के रास्ते में

ज़ीशान साहिल

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