बाहर Poetry (page 15)

हर घड़ी मत रूठ उस से फेर पल में मिल न जा

हसरत अज़ीमाबादी

दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से

हसीब सोज़

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए

हसीब सोज़

तल्ख़ियाँ रह जाएँगी लफ़्ज-ए-वफ़ा रह जाएगा

हसन निज़ामी

शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला

हसन अज़ीज़

कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए

हसन आबिदी

सवाल ये नहीं मुझ से है क्यूँ गुरेज़ाँ वो

हसन अब्बास रज़ा

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

हमारी जेब में ख़्वाबों की रेज़गारी है

हसन अब्बास रज़ा

न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके

हसन अब्बास रज़ा

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें

हसन अब्बास रज़ा

ख़ामुशी से सवाल मेरा था

हरबंस तसव्वुर

शिकस्ता दिल किसी का हो हम अपना दिल समझते हैं

हनीफ़ अख़गर

हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला

हम्माद नियाज़ी

उल्टा चक्कर

हमीदा शाहीन

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

देखने वाले को बाहर से गुमाँ होता नहीं

हामिद जीलानी

अपने हिसार-ए-जिस्म से बाहर भी देखते

हामिद जीलानी

कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था

हमीद जालंधरी

मिरी आँखों से हट कर कुछ नहीं है

हमीद गौहर

टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत

हकीम मंज़ूर

बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल

हकीम मंज़ूर

आग जो बाहर है पहुँचेगी अंदर भी

हकीम मंज़ूर

जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है

हैदर क़ुरैशी

उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए

हैदर अली आतिश

सूरत से इस की बेहतर सूरत नहीं है कोई

हैदर अली आतिश

मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था

हैदर अली आतिश

लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता

हैदर अली आतिश

हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का

हैदर अली आतिश

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