मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है
अभी वो शख़्स मिरी दास्ताँ से बाहर है
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मैं तर्क-ए-तअल्लुक़ पे भी आमादा हूँ लेकिन
ये कार-ए-इश्क़ तो बच्चों का खेल ठहरा है
किस को थी ख़बर इस में तड़ख़ जाएगा दिल भी
क्या शख़्स था उड़ाता रहा उम्र भर मुझे
किसी की याद में आँखों को लाल क्या करना
इरादा था कि अब के रंग-ए-दुनिया देखना है
रिया-कारियों से मुसल्लह ये लश्कर मुझे मार देंगे
शब की शब महफ़िल में कोई ख़ुश-कलाम आया तो क्या
मोहब्बतें तो फ़क़त इंतिहाएँ माँगती हैं
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दशना मिल जाएगा
सीने की ख़ानक़ाह में आने नहीं दिया