मोहब्बतें तो फ़क़त इंतिहाएँ माँगती हैं
मोहब्बतों में भला ए'तिदाल क्या करना
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मैं तलाश में किसी और की मुझे ढूँढता कोई और है
एक बे-नाम सा डर सीने में आ बैठा है
रिया-कारियों से मुसल्लह ये लश्कर मुझे मार देंगे
हमें तो ख़्वाहिश-ए-दुनिया ने रुस्वा कर दिया है
धड़कती क़ुर्बतों के ख़्वाब से जागे तो जाना
हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो
आसार-ए-क़दीमा से निकला एक नविश्ता
सिवा तेरे हर इक शय को हटा देना है मंज़र से
कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें
हमारी जेब में ख़्वाबों की रेज़गारी है
हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ
न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके