दास्ताँ Poetry

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

अल्का मिश्रा

तहरीर

बलराज कोमल

चले हैं साथ हम अंजान हो कर

फ़रह शाहिद

गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा

आज़ाद हुसैन आज़ाद

देख कर वहशत निगाहों की ज़बाँ बेचैन है

गौतम राजऋषि

हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था

आशू मिश्रा

किसी के बिछड़ने का डर ही नहीं

फ़ारूक़ इंजीनियर

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

अपने शहर के लिए दुआ

मुनीर नियाज़ी

अलाव

बलराज कोमल

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

इश्क़ में मारके बला के रहे

ज़ुहूर नज़र

मैं अपनी दास्ताँ को आख़िर-ए-शब तक तो ले आया

ज़ुबैर रिज़वी

जो सुन सको तो ये सब दास्ताँ तुम्हारी है

ज़ेहरा निगाह

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

ये कैसा काम ऐ दस्त-ए-मसीह कर डाला

ज़मीर अतरौलवी

कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं

ज़ेब बरैलवी

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

संग-ए-जाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

सिवा है हद से अब एहसास की गिरानी भी

ज़ाहिदा ज़ैदी

हो गए अम्बर-फ़शाँ दोनों-जहाँ मेरे लिए

ज़ाहीदा कमाल

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

आँधियाँ उट्ठीं फ़ज़ाएँ दूर तक कजला गईं

ज़हीर काश्मीरी

वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो

ज़हीर देहलवी

बे-हिसी पर हिस्सियत की दास्ताँ लिख दीजिए

ज़फ़र सहबाई

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

अजब कोई ज़ोर-ए-बयाँ हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

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