दास्ताँ Poetry (page 2)

वादी-ए-नील

यूसुफ़ ज़फ़र

तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया

यूसुफ़ ज़फ़र

दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ

योगेन्द्र बहल तिश्ना

शम्अ होगी सुब्ह तक बाक़ी न परवाने की ख़ाक

यज़दानी जालंधरी

निगाह-ए-बद-गुमाँ है और मैं हूँ

याक़ूब उस्मानी

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी

याक़ूब आमिर

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

चुटकी भर रौशनी

वज़ीर आग़ा

बादल बरस के खुल गया रुत मेहरबाँ हुई

वज़ीर आग़ा

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी

रह-ए-कहकशाँ से गुज़र गया हमा-ईन-ओ-आँ से गुज़र गया

वक़ार बिजनोरी

फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे

वाली आसी

फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे

वाली आसी

फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम

वाली आसी

फ़ज़ा में दाएरे बिखरे हुए हैं

वजद चुगताई

वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हुस्न की ज़बान से

वहीदुद्दीन सलीम

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

बहुत उकता गया हूँ अपने जी से

विश्वनाथ दर्द

अगर कुछ मोड़ रस्ते में न आते

विश्वनाथ दर्द

अब हम चराग़ बन के सर-ए-राह जल उठे

विश्वनाथ दर्द

लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा

विशाल खुल्लर

मिरी उरूज की लिक्खी थी दास्ताँ जिस में

विकास शर्मा राज़

उसे छुआ ही नहीं जो मिरी किताब में था

विकास शर्मा राज़

मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे

विजय शर्मा अर्श

अक्सर मिरी ज़मीं ने मिरे इम्तिहाँ लिए

उषा भदोरिया

अश्क पर गुदाज़-दिल हाशिया चढ़ाता है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है

त्रिपुरारि

क़रीब आ न सका मैं तिरे मगर ख़ुश हूँ

तिश्ना बरेलवी

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