दास्ताँ Poetry (page 3)

दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ

तिश्ना बरेलवी

चमन में बर्क़ कभी आशियाँ से दूर नहीं

तिश्ना बरेलवी

है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'

तिलोकचंद महरूम

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

मरते मरते रौशनी का ख़्वाब तो पूरा हुआ

तौसीफ़ तबस्सुम

किसी ने पूछा जो उम्र-ए-रवाँ के बारे में

तसनीम आबिदी

जैसे कश्ती और उस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

जैसे कश्ती और इस पर बादबाँ फैले हुए

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

सिसकती मज़लूमियत के नाम

तारिक़ क़मर

मैं हबीब हूँ किसी और का मिरी जान-ए-जाँ कोई और है

तारिक़ मतीन

चार साल बा'द

तनवीर अंजुम

दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो

तल्हा रिज़वी बारक़

वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना

तालीफ़ हैदर

नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं

तालीफ़ हैदर

बहाऊँगा न मैं आँसू न मुस्कराउँगा

तैमूर हसन

देव-मालाएँ सच्ची होती हैं

ताबिश कमाल

ये शहर आफ़तों से तो ख़ाली कोई न था

ताबिश कमाल

रंगून का मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

कसरत-ए-औलाद

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

गुलज़ार-ए-वतन

सुरूर जहानाबादी

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

हर एक दास्ताँ तुझ से शुरूअ होती है

सुल्तान अख़्तर

तिलिस्म-ए-कार-ए-जहाँ का असर तमाम हुआ

सुल्तान अख़्तर

इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल

सुहैल अख़्तर

ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ

सूफ़ी तबस्सुम

मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है

सूफ़ी तबस्सुम

अफ़्साना-हा-ए-दर्द सुनाते चले गए

सूफ़ी तबस्सुम

मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही

सुदर्शन फ़ाकिर

मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा

सुबोध लाल साक़ी

तेरा ही ज़िक्र हरसू तिरा ही बयाँ मिले

सिया सचदेव

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