दास्ताँ Poetry (page 5)

सुन ली रामायन की जब पूरी कथा

शाइस्ता यूसुफ़

जिस ने भी दास्ताँ लिखी होगी

शाइस्ता यूसुफ़

आशिक़ों के सैर करने का जहाँ ही और है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जो कुछ भी मेरे पास थी दौलत निगल गई

शहज़ाद हुसैन साइल

न पूछ मेरी कहानी कहाँ से निकली है

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

बाग़-ए-बहिश्त के मकीं कहते हैं मर्हबा मुझे

शहज़ाद अहमद

ज़बाँ मिली भी तो किस वक़्त बे-ज़बानों को

शहरयार

दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रही

शहरयार

है मिरा रंग-ए-सुख़न रंग-ए-बयाँ कुछ मुख़्तलिफ़

शाहिदा लतीफ़

दिल जहाँ भी डूबा है उन की याद आई है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

चर्चे हर इक ज़बान पे हुस्न-ए-बुताँ के हैं

शाग़िल क़ादरी

मुझे किसी पे मोहब्बत का कुछ गुमाँ सा है

शफ़क़ सुपुरी

क्यूँ हो बहाना-जू न क़ज़ा सर से पाँव तक

शाद अज़ीमाबादी

ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम

शाद अज़ीमाबादी

सदा रहेगी यही रवानी रवाँ है पानी

शब्बीर शाहिद

कभी भूल कर भी न बात की मुझे दिल से ऐसा भुला दिया

शबाब

जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से

शाद आरफ़ी

कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगी

शाद आरफ़ी

वो दुनिया थी जहाँ तुम बंद करते थे ज़बाँ मेरी

सीमाब अकबराबादी

कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है

सीमाब अकबराबादी

ये किस ने शाख़-ए-गुल ला कर क़रीब-ए-आशियाँ रख दी

सीमाब अकबराबादी

जरस है कारवान-ए-अहल-ए-आलम में फ़ुग़ाँ मेरी

सीमाब अकबराबादी

इजाज़त दे कि अपनी दास्तान-ए-ग़म बयाँ कर लें

सीमाब अकबराबादी

चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है

सीमाब अकबराबादी

ज़मीं की वुसअ'तों से आसमाँ तक

सत्यपाल जाँबाज़

जो लोग रह गए हैं मिरी दास्ताँ से दूर

सरवर नेपाली

तेरी नाराज़गी फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है

सरताज आलम आबिदी

जहाँ चौखट है वाँ ज़ीना था पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है

सरदार सोज़

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