दास्ताँ Poetry (page 7)

बराए नाम सही साएबाँ ज़रूरी है

सग़ीर मलाल

जज़्बा-ए-सोज़-ए-तलब को बे-कराँ करते चलो

साग़र सिद्दीक़ी

कोई पास आया सवेरे सवेरे

सईद राही

वो लोग आज ख़ुद इक दास्ताँ का हिस्सा हैं

साबिर ज़फ़र

ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल

साबिर ज़फ़र

जो ख़्वाब मेरे नहीं थे मैं उन को देखता था

साबिर वसीम

किस को बताते किस से छुपाते सुराग़-ए-दिल

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा

सबा अकबराबादी

होश-ओ-ख़िरद से दूर हूँ सूद-ओ-ज़ियाँ से दूर

सबा अफ़ग़ानी

सुना भी कभी माजरा दर्द-ओ-ग़म का किसी दिल-जले की ज़बानी कहो तो

साइल देहलवी

मुँह-ज़ोर आरज़ूओं की बे-मेहरियाँ न पूछ

रूही कंजाही

और अभी तेज़ दौड़ना है मुझे

रूही कंजाही

ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में

रियाज़ लतीफ़

ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी

रियाज़ ख़ैराबादी

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में

रिफ़अत सेठी

बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन

रिफ़अत सरोश

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

रज़ा जौनपुरी

उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया

रज़ा अज़ीमाबादी

फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग

रविश सिद्दीक़ी

कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

हर ख़ुशी तेरे नाम की मैं ने

राशिद क़य्यूम अनसर

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

मैं उसे अपने मुक़ाबिल देख कर घबरा गया

रशीद निसार

कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए

राम कृष्ण मुज़्तर

हर जाद-ए-शहर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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