दास्ताँ Poetry (page 8)

सियाह-ख़ाना-ए-उम्मीद-ए-राएगाँ से निकल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरी दास्ताँ मुझे ही मिरा दिल सुना के रोए

राजेन्द्र कृष्ण

किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी

राजेन्द्र कृष्ण

मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं

राजेश रेड्डी

ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है

राजेश रेड्डी

न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़

राजेश रेड्डी

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम

राजेश रेड्डी

ख़ुद-कुशी

राजा मेहदी अली ख़ाँ

अदीब की महबूबा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

दुनिया में जो समझते थे बार-ए-गिराँ मुझे

रईस सिद्दीक़ी

न मैं हाल-ए-दिल से ग़ाफ़िल न हूँ अश्क-बार अब तक

इरफ़ान अहमद मीर

ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की

इक़बाल सुहैल

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

ये निगाह-ए-शर्म झुकी झुकी ये जबीन-ए-नाज़ धुआँ धुआँ

इक़बाल अज़ीम

रास्ते जिस तरफ़ बुलाते हैं

इनाम नदीम

ख़ुदा तू इतनी भी महरूमियाँ न तारी रख

इमरान हुसैन आज़ाद

मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं

इमरान आमी

मस्जिद-ए-अहमरीं

इलियास बाबर आवान

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ

इब्न-ए-सफ़ी

कुछ भी तो अपने पास नहीं जुज़-मता-ए-दिल

इब्न-ए-सफ़ी

ख़यालों ख़यालों में किस पार उतरे

हुसैन आबिद

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

मिरी दास्ताँ भी अजीब है वो क़दम क़दम मिरे साथ था

हिलाल फ़रीद

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

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