दास्ताँ Poetry (page 17)

बहुत मलूल बड़े शादमाँ गए हुए हैं

अब्दुल अहद साज़

ये तुम से किस ने कहा है कि दास्ताँ न कहो

अब्बास अलवी

जो सारे हम-सफ़र इक बार हिर्ज़-ए-जाँ कर लें

अब्बास अलवी

मिरे हर ज़ख़्म पर इक दास्ताँ थी उस के ज़ुल्मों की

आज़िम कोहली

ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले

आज़िम कोहली

ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था

आज़िम कोहली

जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ

आज़िम कोहली

लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे

अातिश बहावलपुरी

आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं

अातिश बहावलपुरी

मंज़िल पे ले के पहुँचेगा अज़्म-ए-जवाँ मुझे

आसी रामनगरी

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