मिरे हर ज़ख़्म पर इक दास्ताँ थी उस के ज़ुल्मों की
मिरे ख़ूँ-बार दिल पर उस के हाथों का निशाँ भी था
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ख़ाक से थे ख़ाक से ही हो गए
एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी
बहुत अज़ीज़ था आलम वो दिल-फ़िगारी का
वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं
ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले
नीला अम्बर चाँद सितारे बच्चों की जागीरें हैं
ज़िंदगी सुंदर ग़ज़ल है दोस्तो
बात चल निकलेगी फिर इक़रार की इंकार की
दूर है मंज़िल तो क्या रस्ता तो है
इक इश्क़ है कि जिस की गली जा रहा हूँ मैं
सिलसिले सब रुक गए दिल हाथ से जाता रहा
किधर का था किधर का हो गया हूँ