उक़दह Poetry

सब्र ख़ुद उकता गया अच्छा हुआ

याक़ूब उस्मानी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

मह-ओ-पर्वीं तह-ए-कमंद रहे

ताबिश देहलवी

हो गई उक़्दा-कुशाई तिरे दीवाने से

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है

सूफ़ी तबस्सुम

दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर

सिराज औरंगाबादी

निगह-ए-लुत्फ़ में है उक़्दा-कुशाई मुज़्मर

शेर सिंह नाज़ देहलवी

कुछ इशारे वो सर-ए-बज़्म जो कर जाते हैं

शेर सिंह नाज़ देहलवी

क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ

शाह नसीर

ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ

शाह नसीर

कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं

शाह नसीर

मिले शौक़ीन बातें हो रही हैं

सरवत मुख़तार

गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह

सरवत हुसैन

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

आ के अब जंगल में ये उक़्दा खुला

सलीम अहमद

आ के अब जंगल में ये उक़्दा खुला

सलीम अहमद

वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया

साहिर देहल्वी

इक परी का फिर मुझे शैदा किया

रिन्द लखनवी

दाम फैलाए हुए हिर्स-ओ-हवा हैं कितने

रौशन नगीनवी

बहुत दिनों में ये उक़्दा खुला कि मैं भी हूँ

रसा चुग़ताई

हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

बुलंद-ओ-पस्त में मंज़िल हमें कहीं न मिली

रईस अमरोहवी

तल्ख़ी-ए-ग़म का जो है मुकम्मल जवाब ला

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़

इमदाद अली बहर

कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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