दुख Poetry

हम को आगही न दो

मर्यम तस्लीम कियानी

इस्तिआ'रा

हारिस ख़लीक़

मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई

अहमद मुश्ताक़

ज़िंदगी होने का दुख सहने में है

अर्श सिद्दीक़ी

अब तक तो यही पता नहीं है

बिमल कृष्ण अश्क

मुक़फ़्फ़ल चुप

फ़ैसल हाश्मी

मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई

ज़ुहैर कंजाही

शरीफ़-ज़ादा

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें

ज़ुबैर रिज़वी

एक इक कर के बहुत दुख साथ मेरे हो लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया

ज़ुबैर फ़ारूक़

तेरे दुख को पा कर हम तो अपना दुख भी भूल गए

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

तन्हा

ज़िया जालंधरी

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

पैग़ाम

ज़िया जालंधरी

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

ज़िया जालंधरी

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

हमें तो आदत-ए-ज़ख़्म-ए-सफ़र है क्या कहिए

ज़ेहरा निगाह

नज़्म

ज़ीशान साहिल

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें

ज़करिय़ा शाज़

संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें

ज़करिय़ा शाज़

ख़्वाब सितारे होते होंगे लेकिन आँखें रेत

ज़ाहिद शम्सी

काएनाती गर्द में बरसात की एक शाम

ज़ाहिद इमरोज़

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