दुख Poetry (page 19)

शिकारी रात भर बैठे रहे ऊँची मचानों पर

अख़्तर होशियारपुरी

क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था

अख़्तर होशियारपुरी

चाहो तो मिरा दुख मिरा आज़ार न समझो

अख़तर बस्तवी

यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

इस में कोई मिरा शरीक नहीं

अख़्तर अंसारी

सुनने वाले फ़साना तेरा है

अख़्तर अंसारी

मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है

अख़्तर अंसारी

हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें

अख़्तर अंसारी

ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं

अख़्तर अंसारी

ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है

अकबर इलाहाबादी

तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था

ऐतबार साजिद

मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा

ऐतबार साजिद

मुहताज हम-सफ़र की मसाफ़त न थी मिरी

ऐतबार साजिद

कहा दिन को भी ये घर किस लिए वीरान रहता है

ऐतबार साजिद

भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें

ऐतबार साजिद

मेरे बाद आ

ऐन रशीद

बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम

ऐन इरफ़ान

क़ल्ब की बंजर ज़मीं पर ख़्वाहिशें बोते हुए

ऐन इरफ़ान

क्या किसी बात की सज़ा है मुझे

ऐन इरफ़ान

बला की धूप थी मैं जल रहा था

ऐन इरफ़ान

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शायरी है

अहमद सलमान

जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है

अहमद सलमान

हम ही बदलेंगे रह-ओ-रस्म-ए-गुलिस्ताँ यारो

अहमद रियाज़

एहसास में फूल खिल रहे हैं

अहमद नदीम क़ासमी

उम्र भर दुख सहते सहते आख़िर इतना तो हुआ

अहमद मुश्ताक़

तुम्हारे हिज्र को काफ़ी नहीं समझता मैं

अहमद कामरान

सुख की ख़ातिर दुख मत बेच

अहमद जावेद

मुझ से बड़ा है मेरा हाल

अहमद जावेद

बारिश का है ऐसा काल

अहमद जावेद

शाम

अहमद हमेश

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