इस में कोई मिरा शरीक नहीं
मेरा दुख आह सिर्फ़ मेरा है
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माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
ग़म-ए-दिल का इलाज दुनिया में
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
क़ल्ब ज़िंदा है लफ़्ज़ हैं बे-जान
सोते में कोई आह भरी तो होगी
शोले भड़काओ देखते क्या हो
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
बहार-ए-फ़िक्र के जल्वे लुटा दिए हम ने