तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
रूह-ए-अबदी दर्द से मरती होगी
सच ये है कि हम अहल-ए-जहाँ क्या जानें
जो ख़ालिक़-ए-आलम पे गुज़रती होगी
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सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
फ़िदा-ए-मंज़िल-ए-बे-जादा हैं ख़ुदा रक्खे
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
इक तीर कलेजे में पिरोया हम ने
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है