फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है
तपिश दिल की बहार-ए-यासमीं मालूम होती है
मिरा काफ़िर मज़ाक़-ए-हुस्न अब तुम पूछते क्या हो
मुझे अपनी तबाही भी हसीं मालूम होती है
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फ़िदा-ए-मंज़िल-ए-बे-जादा हैं ख़ुदा रक्खे
कोई जंगल में गा रहा है गीत
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
साँसों में लिए कर्ब-ओ-बला जीता हूँ
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
जो हो न सका हम से वो कर जाओ तुम
पढ़ा है मैं ने फ़सानों में जिस तरह 'अख़्तर'
नश्शा-ए-ख़्वाब में मदहोश है सारी दुनिया