अपमान Poetry

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

हम ही ज़र्रे रुस्वाई से

ए जी जोश

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

रास आने लगी थी तन्हाई

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

घर से उस का भी निकलना हो गया आख़िर मुहाल

ज़ुहूर नज़र

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो

ज़ेहरा निगाह

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है

ज़रीना सानी

आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया

ज़की काकोरवी

वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं

ज़हीर काश्मीरी

हद हो चक्की है शर्म-ए-शकेबाई ख़त्म हो

ज़फ़र इक़बाल

क्यूँ मैं हाइल हो जाता हूँ अपनी ही तन्हाई में

ज़फ़र हमीदी

है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

यूसुफ़ ज़फ़र

रू-ब-रू हैं वो देखता क्या है

यूनुस ग़ाज़ी

इक ख़ुशी के लिए हैं कितने ग़म

यज़दानी जालंधरी

बाग़ों में आएगी कब बहार

यहया अमजद

तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को

वसीम बरेलवी

हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस

वामिक़ जौनपुरी

हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं

वली उज़लत

यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है

वाली आसी

फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम

वाली आसी

प्यार के बंधन रिश्ते देखो

वाजिद सहरी

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

माँगने वालों को क्या इज़्ज़त ओ रुस्वाई से

वहीद अख़्तर

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

वहीद अख़्तर

दफ़्तर-ए-लौह ओ क़लम या दर-ए-ग़म खुलता है

वहीद अख़्तर

हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

शिद्दत-ए-इज़हार-ए-मज़मूँ से है घबराई हुई

तुफ़ैल बिस्मिल

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