अपमान Poetry (page 7)

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

ग़ालिब

चाहिए अच्छों को जितना चाहिए

ग़ालिब

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है

ग़ालिब

इंतिज़ार-ए-दीद में यूँ आँख पथराई कि बस

ग़व्वास क़ुरैशी

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

फ़े सीन एजाज़

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

फ़े सीन एजाज़

उस तरफ़ तू तिरी यकताई है

फ़रहत एहसास

मैं महफ़िल-बाज़ घबरा कर हुआ तन्हाई वाला

फ़रहत एहसास

ख़ूब होनी है अब इस शहर में रुस्वाई मिरी

फ़रहत एहसास

शिकायत हम नहीं करते रिआ'यत वो नहीं करते

फ़रह इक़बाल

मुझ को दुनिया के हर इक ग़म से छुड़ा रक्खा है

फ़ना बुलंदशहरी

मरसिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

धूप सा यू कपूल नारी है

फ़ाएज़ देहलवी

ख़्वाबों के सनम-ख़ाने जब ढाए गए होंगे

एज़ाज़ अफ़ज़ल

अब सराब के चश्मे मौजज़न नहीं होते

एज़ाज़ अफ़ज़ल

कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था

एहसान दानिश

अपनी रुस्वाई का एहसास तो अब कुछ भी नहीं

एहसान दानिश

इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवा

दिल अय्यूबी

मैं सिर्फ़ वो नहीं जो नज़र आ गया तुझे

दिल अय्यूबी

क्या चाहा था क्या सोचा था क्या गुज़री क्या बात हुई

देवमणि पांडेय

दोनों में कितना फ़र्क़ मगर दोनों का हासिल तन्हाई

दीप्ति मिश्रा

जब मिला यार तू अग़्यार सेती क्या मतलब

दाऊद औरंगाबादी

दफ़अ'तन तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ में भी रुस्वाई है

दाग़ देहलवी

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