अपमान Poetry (page 4)

दुख दे या रुस्वाई दे

सलीम अहमद

और तो क्या दिया बहारों ने

सलीम अहमद

स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का

सलीम अहमद

दुख दे या रुस्वाई दे

सलीम अहमद

दीदनी है हमारी ज़ेबाई

सलीम अहमद

घिरते बादल में तन्हाई कैसी लगती है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अब के क़िमार-ए-इश्क़ भी ठहरा एक हुनर दानाई का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

सुब्ह-ए-इशरत ज़िंदगी की शाम हो कर रह गई

सैफ़ बिजनोरी

जब कभी उन की तवज्जोह में कमी पाई गई

साहिर लुधियानवी

तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है

साहिर होशियारपुरी

कैफ़-ए-मस्ती में अजब जलवा-ए-यकताई था

साहिर देहल्वी

असासा

साहिल अहमद

उस की आँखों में थी गहराई बहुत

साहिल अहमद

जो हैं हवस के पुजारी वो माल-ओ-ज़र के लिए

सहर महमूद

इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया

साग़र सिद्दीक़ी

कौन कहता है बुलंदी पे नहीं हूँ 'सागर'

साग़र ख़य्यामी

तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है

साग़र ख़य्यामी

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

सफ़ी लखनवी

इतना तो हुआ ऐ दिल इक शख़्स के जाने से

सईद राही

यूँ लगे दर्द की इस दिल से शनासाई है

सचिन शालिनी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी

सादुल्लाह शाह

पुर-हौल ख़राबों से शनासाई मिरी है

रूही कंजाही

मेरे अफ़्कार ने जिस शय से जिला पाई है

रियासत अली ताज

आप अपनी नक़ाब है प्यारे

रियासत अली ताज

संग हैं नावक-ए-दुश्नाम हैं रुस्वाई है

राज़ी अख्तर शौक़

न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना

राज़ी अख्तर शौक़

नाज़ का मारा हुआ हूँ मैं अदा की सौगंद

रज़ा अज़ीमाबादी

अब्र के बिन देखे हरगिज़ ख़ुश दिल-ए-मस्ताँ न हो

रज़ा अज़ीमाबादी

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