तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है

तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है

मैं घर की अँगनाई में ख़ुश हूँ मेरे लिए अँगनाई बहुत है

अपनी अपनी ज़ात में गुम हैं अहल-ए-दिल भी अहल-ए-नज़र भी

महफ़िल में दिल क्यूँ कर बहले महफ़िल में तन्हाई बहुत है

ग़र्क़-ए-दरिया होना यारो 'ग़ालिब' ने क्यूँ चाहा आख़िर

ऐसी मर्ग-ए-ला-वारिस में सोचो तो रुस्वाई बहुत है

दुश्मन से घबराना अबस है ग़ैर से डरना भी ला-हासिल

कुल का घातक घर का भेदी एक विभीषण भाई बहुत है

बरसों में इक जोगी लौटा जंगल में फिर जोत जगाई

कहने लगा ऐ भोले शंकर शहरों में महँगाई बहुत है

अपनी धरती ही के दुख-सुख हम इन शेरों में कहते हैं

हम को हिमाला से क्या मतलब उस की तो ऊँचाई बहुत है

पुर्सिश-ए-ग़म को ख़ुद नहीं आए उन का मगर पैग़ाम तो आया

हिज्र की रुत में जान-ए-हज़ीं को दूर की ये शहनाई बहुत है

दिल की किताबें पढ़ नहीं सकता लेकिन चेहरे पढ़ लेता हूँ

ढलती उम्र की धूप में 'साहिर' इतनी भी बीनाई बहुत है

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In Hindi By Famous Poet Sahir Hoshiyarpuri. is written by Sahir Hoshiyarpuri. Complete Poem in Hindi by Sahir Hoshiyarpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.