देर Poetry

कहानी बस इतनी सी थी

मर्यम तस्लीम कियानी

मेरे आसमान के चाँद को ख़बर दो

मर्यम तस्लीम कियानी

दीवार

मुबश्शिर अली ज़ैदी

प्यादे

मुबश्शिर अली ज़ैदी

तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं

तरुणा मिश्रा

बशारत के कासों में

हामिद जीलानी

ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में

अमित सतपाल तनवर

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें

जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ

असरार बड़ी देर में ये मुझ पे खुला है

ज़ुल्फ़िक़ार अहसन

गुलाबों के होंटों पे लब रख रहा हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

सियाह पट्टी

ज़ुबैर रिज़वी

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

ज़ुबैर रिज़वी

मिलन मौसमों की सज़ा चाहता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें

ज़ुबैर रिज़वी

दिल को रंजीदा करो आँख को पुर-नम कर लो

ज़ुबैर रिज़वी

बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो

ज़ुबैर रिज़वी

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

क़ुर्बतों के ये सिलसिले भी हैं

ज़िया शबनमी

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

कोई भी रस्ता बहुत सोच कर चुनूँगा मैं

ज़िया मज़कूर

तुझ को छुआ तो देर तक ख़ुद को ही ढूँडता रहा

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

सूरज निकलने शाम के ढलने में आ रहूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कितने ही फ़ैसले किए पर कहाँ रुक सका हूँ मैं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

चाक

ज़िया जालंधरी

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

ज़िया जालंधरी

ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच

ज़िया जालंधरी

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

ज़िया जालंधरी

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