देर Poetry (page 17)

कम-निगही

राज नारायण राज़

बूँदें पड़ी थीं छत पे कि सब लोग उठ गए

राज नारायण राज़

अशआर रंग रूप से महरूम क्या हुए

राज नारायण राज़

इक अपने सिलसिले में तो अहल-ए-यक़ीं हूँ मैं

रईस फ़रोग़

दुनिया का वबाल भी रहेगा

रईस फ़रोग़

धूप में हम हैं कभी हम छाँव में

रईस फ़रोग़

तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो

रईस अमरोहवी

सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले

रईस अमरोहवी

अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा

राहुल झा

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

चोर

राही मासूम रज़ा

चाँद और चकोर

राही मासूम रज़ा

तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे

राहील फ़ारूक़

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया

इक़बाल सुहैल

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

गुज़र गई जो चमन पर वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी

अज्नबिय्यत का हर इक रुख़ पे निशाँ है यारो

इक़बाल माहिर

मोहब्बतों ने बड़ी हेर-फेर कर दी है

इक़बाल कैफ़ी

नक़्श माज़ी के जो बाक़ी हैं मिटा मत देना

इक़बाल अज़ीम

हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ

इक़बाल अंजुम

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

चंद मुद्दत को फिराक़-ए-सनम-ओ-दैर तो है

इंशा अल्लाह ख़ान

ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से

इंशा अल्लाह ख़ान

यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

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