दुनिया का वबाल भी रहेगा
कुछ अपना ख़याल भी रहेगा
शोलों से तुझे गुज़ार देंगे
हम से ये कमाल भी रहेगा
बाँहों में सिमट के हुस्न तेरा
कुछ देर निढाल भी रहेगा
ऐ जान तुझे ख़राब कर के
थोड़ा सा मलाल भी रहेगा
मुझ को तिरी नाज़ुकी का एहसास
दौरान-ए-विसाल भी रहेगा
Mohsin Naqvi
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कह रहे थे लोग सहरा जल गया
मैं तो हर लम्हा बदलते हुए मौसम में रहूँ
फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
इस्फ़न्ज की अंधी सीढ़ियों पर
नए शहरों की बुनियाद
हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में
गर्म ज़मीं पर आ बैठे हैं ख़ुश्क लब-ए-महरूम लिए
इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है
काली रेत
रेत का शहर
फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई