मुझे अपने शहर से प्यार है
न सही अगर मिरे शहर में
कोई कोह-ए-सर-ब-फ़लक नहीं
कहीं बर्फ़-पोश बुलंदियों की झलक नहीं
ये अज़ीम बहर
जो मेरे शहर
के साथ है
मिरी ज़ात है
Gulzar
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फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई
जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए
दुनिया का वबाल भी रहेगा
किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ
हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में
कह रहे थे लोग सहरा जल गया
कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं
नतशे ने कहा
सच्चाई
रेत का शहर
अपनी मिट्टी को सर-अफ़राज़ नहीं कर सकते
इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए