तुलना Poetry

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो

ज़ेहरा निगाह

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

नाम से गाँधी के चिढ़ बैर आज़ादी से है

ज़फ़र कमाली

नवा-ए-हक़ पे हूँ क़ातिल का डर अज़ीज़ नहीं

ज़फ़र कलीम

राब्ता क्यूँ रखूँ मैं दरिया से

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है

ज़फ़र इक़बाल

वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ

यूसुफ़ ज़फ़र

शहर लगता है बयाबान मुझे

यूसुफ़ ज़फ़र

किसी के साथ किया निस्बत हुई थी

यासमीन हबीब

ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत

वासिफ़ देहलवी

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती

वासिफ़ देहलवी

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

अक्सर मिरी ज़मीं ने मिरे इम्तिहाँ लिए

उषा भदोरिया

आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ज़िंदगी दिल पे अजब सेहर सा करती जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ग़ज़ालों को तिरी आँखें से कुछ निस्बत नहीं हरगिज़

ताबाँ अब्दुल हई

हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के

ताबाँ अब्दुल हई

अजीब शोख़ी-ए-दुनिया में जी रहा हूँ मैं

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

तमाशा-गाह-ए-आलम पर्दा-दार रू-ए-ज़ेबा है

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

सुलतान रशक

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

सुल्तान अख़्तर

मौसम-ए-गुल तिरे इनआ'म अभी बाक़ी हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में

सिराजुद्दीन ज़फ़र

वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया

सिदरा सहर इमरान

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

सहरा में कड़ी धूप का डर होते हुए भी

शोज़ेब काशिर

मिल गया जब वो नगीं फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर से

शोएब निज़ाम

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