सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

तेरे दर पर न हुई आह सुकूनत मेरी

है मसीहाई का दा'वा तो जिला ले आ कर

दम लबों पर है ज़रा देख तो सूरत मेरी

मैं ने बाज़ार-ए-जहाँ में लिया सौदा तेरा

हुस्न-ए-यूसुफ़ पे फ़िदा क्या हो तबीअत मेरी

बाग़-ए-आलम में ग़म-ए-इश्क़ का फल राहत है

मोजिब-ए-इज़्ज़-ओ-करामत हुई ज़िल्लत मेरी

हूँ मैं आवारा-ओ-गुम-गश्ता रह-ए-मक़सद का

हज़रत-ए-ख़िज़्र से क्या होगी हिदायत मेरी

मैं मुक़ीम-ए-दर-ए-जानाँ हूँ वो तन्हा दश्त-नवर्द

जोश-ए-उल्फ़त में है क्या क़ैस से निस्बत मेरी

उड़ के पहुँचा सर-ए-गर्दूं पे बगूला बन कर

बा'द मिटने के बुलंद उतनी है हिम्मत मेरी

पास मेरे जो न आए कोई शिकवा क्या है

करती है बे-कसी-ए-इश्क़ रिफ़ाक़त मेरी

नारा-ज़न रा'द के मानिंद ग़म-ए-हिज्र से हूँ

सिफ़त-ए-'बर्क़' तड़पने की है आदत मेरी

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In Hindi By Famous Poet Shyam Sunder Lal Barq. is written by Shyam Sunder Lal Barq. Complete Poem in Hindi by Shyam Sunder Lal Barq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.