सुल्तान अख़्तर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सुल्तान अख़्तर
नाम | सुल्तान अख़्तर |
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अंग्रेज़ी नाम | Sultan Akhtar |
जन्म की तारीख | 1940 |
जन्म स्थान | Patna |
ये और बात कि 'अख़्तर' हवेलियाँ न रहीं
सामने आँखों के फिर यख़-बस्ता मंज़र आएगा
सफ़र सफ़र मिरे क़दमों से जगमगाया हुआ
सब के होंटों पे मुनव्वर हैं हमारे क़िस्से
फिर भी हम लोग वहाँ जीते हैं जीने की तरह
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी
किसी के वास्ते जीता है अब न मरता है
हर एक दास्ताँ तुझ से शुरूअ होती है
हमारी सादा-मिज़ाजी पे रश्क करते हैं
फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा
ज़ंग-आलूद ज़बाँ तक पहूँची होंटों की मिक़राज़
ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं
वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़
तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ
तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन
तिलिस्म-ए-कार-ए-जहाँ का असर तमाम हुआ
तेरा ग़म तेरी आरज़ू कब तक
तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा
तन्हाई की ख़लीज है यूँ दरमियान में
सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं
सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई
साँस उखड़ी हुई सूखे हुए लब कुछ भी नहीं
सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है
साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई
रक़्स-ए-ताऊस-ए-तमन्ना नहीं होने वाला
रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है
पस-ए-ग़ुबार-ए-तलब ख़ौफ़-ए-जुस्तुजू है बहुत
नफ़स नफ़स इज़्तिराब में था
मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है
मिरी क़दीम रिवायत को आज़माने लगे