मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

कि दरवेशों की हाजत तो सदा ख़ामोश रहती है

ख़ुशी का जश्न हो या मातम-ए-मर्ग-ए-तमन्ना हो

यहाँ हर हाल में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ख़ामोश रहती है

शजर को वज्द आता है न तो शाख़ें लचकती हैं

बहारों में भी अब बाद-ए-सबा ख़ामोश रहती है

मिरी चश्म-ए-तलब में ख़्वाब का हंगामा ख़ेमा-ज़न

मगर ताबीर मिस्ल-ए-कज-अदा ख़ामोश रहती है

दरून-ए-ख़ाना-ए-दिल रोज़ ओ शब महशर बपा लेकिन

ज़बाँ अपनी बराए-तजरबा ख़ामोश रहती है

चमक उठते हैं जब चेहरे तब-ओ-ताब-ए-तमन्ना से

तो फिर शाइस्तगी-ए-आईना ख़ामोश रहती है

मिरे चारों तरफ़ अक्स-ए-तिलिस्म-ए-सामरी रौशन

ख़मोशी चीख़ती है और सदा ख़ामोश रहती है

लरज़ जाती हैं पलकें अश्क जम जाते हैं आँखों में

जब अपनी ख़्वाहिश-ए-बे-साख़्ता ख़ामोश रहती है

दरख़्तों की बग़ावत है कि ये मौसम की बे-रहमी

कि जंगल आह भरता है हवा ख़ामोश रहती है

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In Hindi By Famous Poet Sultan Akhtar. is written by Sultan Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sultan Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.