आगे बढ़ो Poetry

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

ग़ुरूब होते हुए सूरजों के पास रहे

वफ़ा नक़वी

सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से

अजमल सिद्दीक़ी

दिल्ली पे क़ुर्बान

इज़हार मलीहाबादी

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

क़र्या-ए-वीराँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है

ज़ुबैर अली ताबिश

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

हम बे-घरों के दिल में जगाती है डर गली

ज़िशान इलाही

शहर में हम से कुछ आशुफ़्ता-दिलाँ और भी हैं

ज़ेब ग़ौरी

मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था

ज़ेब ग़ौरी

क्या बताएँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त में कहाँ से गुज़रे

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हिज्र का ये कर्ब सारा बे-असर हो जाएगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

जज़्बा-ए-बे-कराना

ज़ाहिदा ज़ैदी

हो गए अम्बर-फ़शाँ दोनों-जहाँ मेरे लिए

ज़ाहीदा कमाल

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता

ज़हीर काश्मीरी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

वीराँ थी रात चाँद का पत्थर सियाह था

ज़फ़र इक़बाल

ज़मीं फिर दर्द का ये साएबाँ कोई नहीं देगा

ज़फ़र गोरखपुरी

पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए

यूसुफ़ ज़फ़र

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