आगे बढ़ो Poetry (page 13)

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मुझे किस तरह से न हो यक़ीं कि उसे ख़िज़ाँ से गुरेज़ है

ग़ुबार भट्टी

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ग़ालिब

फैमली-प्लैनिंग

फ़ुर्क़त काकोरवी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

महफ़िल-ए-कौन-ओ-मकाँ तेरी ही बज़्म-ए-नाज़ है

फ़िगार उन्नावी

दिल के मकाँ में आँख के आँगन में कुछ न था

फ़ाज़िल अंसारी

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

इश्क़ झेला है तो चेहरा ज़र्द होना चाहिए

फ़े सीन एजाज़

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

सुब्ह होती है तो दफ़्तर में बदल जाता है

फ़रियाद आज़र

ऐसी ख़ुशियाँ तो किताबों में मिलेंगी शायद

फ़रियाद आज़र

सुब्ह होती है तो दफ़्तर में बदल जाता है

फ़रियाद आज़र

इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र

था अबस ख़ौफ़ कि आसेब-ए-गुमाँ मैं ही था

फ़र्रुख़ जाफ़री

कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला

फ़ारूक़ शफ़क़

दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है

फ़ारूक़ शफ़क़

मैं हूँ 'मुज़्तर' बदन की नगरी में

फ़ारूक़ नाज़की

वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

वही मैं हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

सहर के उफ़ुक़ से

फ़ारूक़ मुज़्तर

ये गर्द-ए-राह ये माहौल ये धुआँ जैसे

फ़ारूक़ मुज़्तर

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