आगे बढ़ो Poetry (page 14)

शहर की फ़सीलों पर ज़ख़्म जगमगाएँगे

फ़ारूक़ अंजुम

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

दिल ऐसा मकाँ है जो अगर टूट गया तो

फ़रहत नदीम हुमायूँ

ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया

फ़रहत एहसास

कभी हँसते नहीं कभी रोते नहीं कभी कोई गुनाह नहीं करते

फ़रहत एहसास

गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है

फ़रहत एहसास

मौत का वक़्त गुज़र जाएगा

फ़रहत अब्बास शाह

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

मक़ाम-ए-होश से गुज़रा मकाँ से ला-मकाँ पहुँचा

फ़ना बुलंदशहरी

कुछ बात नहीं जिस्म अगर मेरा जला है

फख्र ज़मान

बस तुम्हारा मकाँ दिखाई दिया

फ़हमी बदायूनी

ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया

फ़हीम शनास काज़मी

ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया

फ़हीम शनास काज़मी

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

एज़ाज़ अहमद आज़र

ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग

एजाज़ रहमानी

ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है

एजाज़ गुल

गलियों में भटकना रह-ए-आलाम में रहना

एजाज़ गुल

ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है

एजाज़ गुल

ढूँढता हूँ रोज़-ओ-शब कौन से जहाँ में है

एजाज़ गुल

ख़्वाब ओ ताबीर-ए-बे-निशाँ मैं था

एजाज़ आज़मी

सोच उन की कैसी है कैसे हैं ये दीवाने

एहतिशाम अख्तर

दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा

एहतिशाम अख्तर

जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और

एहसान जाफ़री

मर्दुम-गज़ीदा इंसान का इलाज

दिलावर फ़िगार

न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है

दिलावर फ़िगार

लम्हा लम्हा वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ की सैर की

दिलावर अली आज़र

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