दिल ऐसा मकाँ है जो अगर टूट गया तो
लग जाएँगी सदियाँ नई तामीर में लिख दे
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न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है
मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
ढूँडेंगे हर इक चीज़ में जीने की उमंगें
नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल
मोहब्बत का ये रुख़ देखा नहीं था
था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी
नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं
मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना
अब ज़िंदगी रो रो के गुज़ारेंगे नहीं हम
ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया
हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है