आगे बढ़ो Poetry (page 2)

मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा

यूसुफ़ ज़फ़र

हर लहज़ा मिरी ज़ीस्त मुझे बार-ए-गराँ है

यूसुफ़ तक़ी

सहने को तो सह जाएँ ग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ तक

यावर अब्बास

तू ला-मकाँ में रहे और मैं मकाँ में असीर

याक़ूब यावर

मिरी दुआओं की सब नग़्मगी तमाम हुई

याक़ूब यावर

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

इक ख़ला सा है जिधर देखो इधर कुछ भी नहीं

याक़ूब आमिर

मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

यगाना चंगेज़ी

सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ

वज़ीर अली सबा लखनवी

काबा बनाइए कि कलीसा बनाइए

वज़ीर अली सबा लखनवी

उन की रफ़्तार से दिल का अजब अहवाल हुआ

वज़ीर अली सबा लखनवी

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है

वज़ीर आग़ा

दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था

वज़ीर आग़ा

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा

वसीम बरेलवी

भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने

वसीम बरेलवी

मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला

वसीम बरेलवी

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी

ख़ूनी क़िला

वामिक़ जौनपुरी

पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है

वलीउल्लाह मुहिब

अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़

वलीउल्लाह मुहिब

सहराओं में भी कोई हमराज़ गुलों का है

वाजिद सहरी

कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे

वाजिद अली शाह अख़्तर

रात क़ातिल की गली हो जैसे

वजद चुगताई

बाम ओ दर ओ दीवार को ही घर नहीं कहते

वहीद अख़्तर

मौत की जुस्तुजू

वहीद अख़्तर

आँख जो नम हो वही दीदा-ए-तर मेरा है

वहीद अख़्तर

शाम के दिन रात

वहीद अहमद

कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

वहीद अहमद

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