ज़मीन पर न रहे आसमाँ को छोड़ दिया
तुम्हारे ब'अद ज़मान ओ मकाँ को छोड़ दिया
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लहू की लहर में इक ख़्वाब-ए-दिल-शिकन भी गया
दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना
तुम्हारी याद निकलती नहीं मिरे दिल से
सारबाँ
सब्र की चादर तह कर दी
हम एक दिन निकल आए थे ख़्वाब से बाहर
यूँ जगमगा उठा है तिरी याद से वजूद
ऐ मुबारज़-तलब
उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम
हमारे शजरे बिखर गए हैं
तमाम उम्र हवा की तरह गुज़ारी है
उस के लबों की गुफ़्तुगू करते रहे सुबू सुबू