जुदा Poetry

किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना

महमूद शाम

इंतिज़ार

अभिषेक कुमार अम्बर

एज़रा-पउंड की मौत पर

अख़्तर हुसैन जाफ़री

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

महमूद शाम

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

एक है फिर भी है ख़ुदा सब का

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे

ज़ुबैर क़ैसर

तक रहा है तू आसमान में क्या

ज़िया ज़मीर

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला

ज़ेहरा निगाह

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

नज़्म

ज़ीशान साहिल

ग़ुबार-ए-इश्क़ से हस्ती को भरने वाला हूँ मैं

ज़ीशान साजिद

जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ

ज़ेबा

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

मुद्दत हुई न मुझ से मिरा राब्ता हुआ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ग़ज़ल के शानों पे ख़्वाब-ए-हस्ती ब-चश्म-ए-पुर-नम ठहर गए हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

चुप के सहरा में फ़क़त एक सदा कौन हूँ मैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

अधूरी मौत कर कर्ब

ज़ाहिद इमरोज़

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

कभी बोलना वो ख़फ़ा ख़फ़ा कभी बैठना वो जुदा जुदा

ज़हीर देहलवी

वो नैरंग-ए-उल्फ़त को क्या जानता है

ज़हीर देहलवी

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