कभी बोलना वो ख़फ़ा ख़फ़ा कभी बैठना वो जुदा जुदा
वो ज़माना नाज़ ओ नियाज़ का तुम्हें याद हो कि न याद हो
Anwar Masood
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इंसान वो क्या जिस को न हो पास ज़बाँ का
हम-नशीं उन के तरफ़-दार बने बैठे हैं
किस मुँह से हाथ उठाएँ फ़लक की तरफ़ 'ज़हीर'
ब'अद मरने के भी मिट्टी मिरी बर्बाद रही
हुस्न की गर्मी-ए-बाज़ार इलाही तौबा
वो किसी से तुम को जो रब्त था तुम्हें याद हो कि न याद हो
इश्क़ क्या शय है हुस्न है क्या चीज़
भूल कर हरगिज़ न लेते हम ज़बाँ से नाम-ए-इश्क़
सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले
हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है
सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का
पान बन बन के मिरी जान कहाँ जाते हैं